महात्मा ज्योतिबा फुले रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय की स्थापना एवं वर्तमान स्वरूप
1761 में जब कटेहार प्रदेश के नवाब अली मो॰ मुगल के बादशाह के कारागार में यातनाएं सह रहे थे। अफगान लुटेरा अहमदशाह अफदाली दिल्ली को लूट रहा था उस समय बरेली रामगंगा का तलहटी से अफगानों का सरदार हाफिज रहमत खां से मित्रता का हाथ मिला रैदासी प्रसाद लाल के नेतृत्व में हजारों युवकों ने गंगा के उफनते जल को सौगंध ले सावन को फुआरी में भीगते हुए हाफिज रहमत खां के साथ नवाब अली मोहम्मद को मुक्त करने दिल्ली पहुंचे। अफगानी लुटेरा अहमद शाह अब्दाली ने हाफिज रहमत खां से धर्म और संस्कृति के नाम पर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया तो भारतीय के नाम पर उसे झटक कर तलवारों को इनकार करने वाले रणबांकुरों ने राष्ट्र के प्रति घात करने वालों के रक्त से रंजित तलवारों को यमुना के पावन जल से धोकर कारागार से अली मोहम्मद को मुक्त कराकर कटेहर पर सत्तारूढ़ किया और कटेहर प्रदेश को रुहेलखण्ड नाम दिया।
रोहिलखंड में नई संस्कृति का जन्म हुआ जो गंगा यमुना संस्कृति के रूप में जानी जाती है। हाफिज रहमत खां रैदासो प्रसादी लाल और राव पहाड सिंह के बीच जो समझौते हुये जिसके अन्र्तगत विद्यालयों और मदरसों की स्थापना की गयी। वेतन भोगी अध्यापकों की नियुक्तियां हुयी, आदर्श विद्यालयों की सराहना और आलोचना चली रही थी कि अप्रैल 1744 में अग्रेंजों मुगलों और मराठों के हाथों रूहेलखण्ड के अमर सैनानी रैदासीप्रसाद लाल सिपेसलार, हाफिस रहमत खां और नवाब हाफिस रहमत खां वीरगति को प्राप्त हुयें। अंग्रेजों व इनके सहयोगियों ने रूहेलो और उनकी समतामूलक संस्कृति को रौंद डाला, विद्यालयों का अस्तित्व मिटने लगा और धार्मिक गुरूकुल पर आधारित शिक्षा पुनः अस्तित्व में आ गई।
रूहेलखंड में समता के स्थान पर धार्मिक सांप्रदायिकता बढ़ने लगी और शिक्षा के द्वार जन सामान्य के लिए बंद होने लगे। विद्रोह के अंकुर अंग्रेजों के विरुद्ध पुनः फूटने लगे जो ज्वाला में परिवर्तित हुए। 1857 के गदर के बाद शिक्षा पर कुलीनों का पुनः अधिकार हो गया। ईसाई पादरियों ने अंग्रेजी सत्ता को दृढ़ बनाने के लिए शिक्षा में कुछ परिवर्तन किए परंतु स्वामी जयानंद सरस्वती के आर्यसमाज प्रचार ने डी॰ए॰वी स्कूल की स्थापना रोहिलखंड में भी की, लेकिन व्यवस्था कुलीन एवं संपन्न वर्ग के हाथों तक ही सीमित रही‘‘हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान के नारों रोहिलखंड की शैक्षिक प्रगति की पीठ में कील ठोक दी। रोहिलखंड सांप्रदायिकता की अग्नि में जलने लगा इन्हीं दिनों 1905 में बाबू राधे लाल व्यास व ढांकन लाल ने अखिल भारतीय देशों दलित राज संघ‘‘ की स्थापना की और राजाओं के राज्यों में दलितों को विद्यालय में प्रवेश की मांग की। 1913 में जब दिल्ली दरबार हुआ तो बाबू राधे लाल व्यास ने दलितों के अधिकारों के लिए ज्ञापन तथा दलित शिक्षा की मांग की और कलकत्ता विश्वविद्यालय की तरह रोहिलखंड में विश्वविद्यालय स्थापित किए जाने का सुझाव दिल्ली दरबार में रखा। समय गुजरता गया। 1927 में अंग्रेज शासकों द्वारा आगरा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई और रोहिलखंड की उपेच्छा हुई, इसका विरोध सामान्यतः नहीं हो पाया। लाला रघुनंदन प्रसाद एम॰ ए॰ बाबू राधे लाल द्वारा आंदोलन को इकट्ठा करने का प्रयत्न किया गया परंतु अंग्रेजों और रोहिलांे के बीच जो 36 का आंकड़ा था, उसी के कारण रोहिलखंड की उपेच्छा हुई। अंग्रेज सत्ता के गलियारों में जमीदारों, सामंतो और आंग्न भाषा के उपासकों का वर्चस्व था। 1928 में डिस्ट्रिकट बोर्ड एक्ट बना। 1937 में डिस्ट्रिकट बोर्ड बरेली के चेयरमैन राय बहादुर कुंवरढांकन लाल बनाए गए और बाबू राधे लाल बोर्ड के चेयरमैन शिक्षा समिति डिस्ट्रिकट बोर्ड बनाया गया। इस नवगठित बोर्ड में संयुक्त प्रांत सरकार को रोहिलखंड में शिक्षा के लिए धन मांगने का प्रस्ताव भेजा। इस प्रस्ताव पर डिस्ट्रिकट बोर्ड चेयरमैन शिक्षा समिति के साथ बाबू अशर्फीलाल सक्सेना, ठाकुर भगवान सिंह, पंडित द्वारिका प्रसाद शारदापदो मुखर्जी, खान बहादुर मोहम्मद रजा खां, राय बहादुर शिवप्रसाद आदि के हस्ताक्षर थे, और सरकार से यह भी कहा गया, मुस्लिमों तथा हिंदुओं की पाठशालाओं की व्यवस्था की जाए। 1939 मैसर मेलकम हैलो गवर्नर संयुक्त प्रांत बरेली आए और उनके समक्ष भी डिस्ट्रिकट बोर्ड बरेली का यह प्रस्ताव रखा गया, कि आगरा विश्वविद्यालय की तरह बरेली कॉलेज को स्वतंत्र विश्वविद्यालय बनाया जाए, लेकिन समय की धारा में बरेली कॉलेज को स्वतंत्र विद्यालय ना बना कर आगरा विश्वविद्यालय में संबद्ध कर दिया गया।
सत्ता की उपेक्षा के बाद भी विश्वविद्यालय आंदोलन थमा नहीं, कभी तीव्र तो कभी मंद गति से चलता रहा। 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ, 1956 में बरेली से श्री प्रतापचंद्र आजाद, एम॰एल॰सी॰ बनाए गए। श्री आजाद ने रोहिलखंड में विश्वविद्यालय बनाने का प्रस्ताव विधान परिषद में रखा, परंतु अंग्रेज सरकार ने रोहिलखंड मंडल के साथ जो उपेक्षापूर्ण व्यवहार किया वही व्यवहार ज्यों का त्यों चलता रहा। बिजनौर के तत्कालीन कांग्रेस नेता एवं उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री चै॰ गिरधारी लाल, स्वामी रामानंद शास्त्री मुरादाबाद दाऊदयाल खन्ना बरेली के गौरव सतीशचन्द अग्रवाल जो (प्रथम केन्द्रीय उपरक्षा मंत्री रहे) ने भी रूहेलखण्ड में विश्वविद्यालय स्थापना के लिए प्रयत्न किये, परन्तु निराशा ही हाथ लगी। पं॰ दरबारी लाल शर्मा जब उ॰ प्र॰ विधान परिषद् कि अध्यक्ष बने तो उनहोंने भी रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय की बात सरकार के समक्ष रखी परंतु सरकार का रूहेलखण्ड के विकास में सहयोग नहीं देने का रवैया रहा। रूहेलखण्ड के शैक्षिक विकास में समर्पित डा॰ श्याम स्वरूप, सेठ दमोदरस्वरूप बाबू दवारीलाल आर्य समाजी नेता बाबू चन्द्र, नारायण सक्सेना, दलित नेता जे॰एन॰ सिंह, पं॰ धर्मदत्त वैद्य, डाॅ॰ सत्यभूषण, डी॰एन॰ धव्वा बाबू राम मूर्ति जी, बाबू सतीशचन्द्र, कु॰ भुवन चन्द्र, साहू गोपीनाथ साहू राम स्वरूप, मौला अब्दुल रउफ, पं॰ गुलाब राय त्रिवेदी, बाबू त्रिलोक सिंह, लक्ष्मनदयाल सिंघल आदि का नाम रूहेलखण्ड की शिक्षा के विकास में भुलाया नहीं जा सकता। दानवीर सेठ, फाजुल रहमान उर्फ चुन्ना मियां, शिक्षा विद, वीरेन्द्र वर्मा, हरीश कुमार गंगवार (भू॰ पू॰ मंत्री) समाजवादी नेता फतेहबहादुर सेठ राम किशोर का योगदान शिक्षा के विकाश में विशेष सहारनीय रहा है। रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय की मांग बर्ष 1970 के दशक में पुनः तीव्र हुयी, विभिन्न संस्थाये बनी और विश्वविद्यालय का आंदोदन नये परिधान में बढा। अक्टूबर 1971 के जिला युवक काग्रेंस छात्र शाखा के संयोजक जगमोहन सिंह व्यास के द्वारा रूहेलखण्ड में विश्वविद्यालय व मेडीकल इंजीनियरिंग कालेज के लिए जनजागरण अभियान चलाया गया। इस आंदोलन में काग्रेस नेता नत्थूलाल गंगवार, चन्द्रसेन गंगवार, रघुनाथ सहाय बिसारिया शिक्षक नेता समेश चन्द्र शर्मा विकट तत्कालीन जनसंघ के नेता वृजराज सिंह आछूबाबू भू॰ पू॰ सांसद, सिजजुर रहमान, राजीव जैपति, राजवीर सिंह भू॰ पू॰ संासद आदि का बिशेष योगदान रहा। आगरा से निकलने वाले सैनिक समाचारपत्र ने इस आंदोलन को गति दी। बरेली में नलिन्दा ऐसो॰के तत्वाधान में जनजागरण अभियान चला इस आंदोलन का नेतृत्व (श्री जगमोहन जी ने) किया और दिनांक 29 अक्टूबर 1972 में मोतीपार्क बरेली में सर्वदलीय सभा की गयी। असी सभा में भारी संख्या में समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों ने उपस्थिति से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। परन्तु भारी वर्षा हो जाने के कारण बैठक जिला कांग्रेस कार्यालय कुतुबखाना बरेली में स्थान्तरित कर दी गयी। इस बैठक की अध्यक्षता रिपब्लिक पार्टी नेता संघ प्रिय गौतम ने की। बैठक साम्यवादी नेता चै॰ हरसहाय सिंह, शम्भू वेलवाल, ग्रीषभारती एडवोकेट तत्कालीन जनसंघ नेता मुले राज भसीन, सत्य प्रकाश अग्रवाल, डाॅ॰ सतीशचन्द्र मिश्रा, वीरेन्द्र वर्मा, राधा कृष्णा मेहरोत्रा, कांग्रेस सेठ सतीशचन्द्र, जे॰एन॰ सिंह चेतराम गंगवार, प्रो॰ कृपानन्दन, भानु प्रतापसिंह, त्रिलोकी सिंह, सत्यस्वरूप, सत्यप्रकाश स्वरूप, दुर्गा, प्रसाद दिग्विजय सिंह, गुलाब राय त्रिवेदी, शिक्षक नेता रमेशचन्द्र शर्मा विकट छात्र नेता श्यामपाल सिंह, राजवीर सिंह, इंतजार हुसैन, सरवाखां, अतरसिंह आनन्द रियाज अहमद, अटल, जाहिद खां आदि ने विचार व्यक्त किये। साम्यवादी नेता विजय कुमार शान्त व सेठ सतीशचन्द्र के बीच विवाद हो गया। इस विवाद को संघ प्रिय गौतम, जिनकी अध्यक्षता में सभा चल रही थी, ने बडे प्रयत्न से शान्ति स्थापित करायी। दैनिक अमर उजाला बरेली के सम्पादक श्री मुरारी लाल महेश्वरी ने इस आंदोलन को बढ चढ कर सहयोग किया।
बरेली में स्वाधीनता संग्राम सेनानियों को ताम्र पत्र समर्पित करने की कार्य योजना बनी थी। 7 फरवरी 1974 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। राजकीय इन्टर कालेज में बरेली में विशाल आयोजन की व्यवस्था की गयी। इन्हीं दिनोें बरेली कालेज में आन्दोलन की रूपरेखा बनाने के लिये एक समिति गठित की गयी, जिनके संस्थापक संयोजक बरेली कालेज दर्शन शास्त्र के अध्यक्ष प्रो॰ एम॰एन॰ रस्तोगी थे। इस समिति के अध्यक्ष प्रो॰ कृपानन्दन को बनाया गया। समिति में छात्र प्रमिनिधि के रूप में जनमोहन सिंह व्यास, जीवनचन्द्र त्रिपाठी, घनश्याम शर्मा, सुरेन्द्र अग्रवाल वीरेन्द्र अग्रवाल, श्यामपाल सिंह, सुरेश चन्द्र, कु॰ कुसुम चैधरी व कु॰ परवीन सिद्दीकी को बनाया गया। इस समिति की ओर से मुख्यमंत्री को ज्ञापन देने का कार्य योजना बनायी गयी। तत्कालीन जिलाधिकारी वी॰एन॰ अग्रवाल से बात की गयी परन्तु उन्होंने राजकीय इन्टर कालेज द्वार पर ही ज्ञापन देने की आज्ञा दी। बरेली कालेज के छात्र शिक्षकों का जुलूस बैनर और पट्टिकाओं के साथ राजकीय इन्टर कालेज पहुचां जिसका नेतृत्व प्रो॰ कृपानन्दन, प्रो॰ पी॰एल॰ शुक्ला, प्रो॰ रस्तोगी, प्रो॰ चै॰ नरेन्द्र सिंह छात्रों की ओर से श्यामपाल सिंह, सुरेन्द्र शर्मा, कपिल मिश्रा जाहिद खां, घनश्याम शर्मा, वीरेन्द्र अटल आदि कर रहे थे, इसी बीच जनसंघ के कार्यकर्ताओं की भी भीड छात्रों के बीच आ गयी। इसमें संतोष कुमार गंगवार (केन्द्रीय मंत्री भारत सरकार) गोवर्धन चर्तुवेदी, राजेन्द्र चैधरी आदि ने काले झंडे मुख्यमंत्री के आगमन पर दिखाये। कु॰ सुरेन्द्र कौर के हाथों लगे बैनर से मुख्यमंत्री की टोपी गिर गयी। तत्कालीन मंत्री पं॰ धर्मदत्त वैद्य व बाबू जगदीश शरण अग्रवाल भी भीड में फंस गये, प्रो॰ चैधरी नरेन्द्र सिंह छात्रों के साथ पंडाल में घुस गये चारों ओर अफरा-तफरी मच गयी। पुलिस ने लाठियां भांजी, प्रो॰कृपानन्दन ने बडे प्रयत्न से छात्र-छात्राओं पर नियन्त्रण करने का प्रत्यन किया, परन्तु पुलिस के आगे न चली, पंडाल के बाहर आंसू गैस के गोले दागे जाने लगे। तत्कालीन सी॰ ओ॰ कोतवाली शिव कुमार सिंह, नगर मजिस्ट्रेट श्रीमती ज्योति सिंह के नेतृत्व में सैकडो छात्र गिरफतार किये गये, शहर में कफर्यू लगा दिया गया। कफर्यू के बीच स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक का अभिनन्दन हुआ। जाहिर हुसैन नाम का युवक पुलिस की गोली से मारा गया। राकेश कोहरवाल सहित अनेको छात्र घालय हुये। रूहेलखण्उ विश्वविद्यालय की मांग को भारी जनसमर्थन मिला।
इस आन्दोलन ने सरकार को दहला दिया परिणाम स्वरूप 20.1.74 को शासन को रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय को मांग स्वीकारनी पडी और रूहेलखण्ड की स्थापना हुयी। जिस नदी के किनारे रैसादी प्रसाद लाल, नवाब हाफिज रहमत खां के लिए सैनिकों को प्रशिक्षित करते थे, उसी चंदपुर विचपुरी नदी के किनारे रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय बना है।